जौन आफ़ताब (सूरज) हैं .....
दूर से रौशन करते हैं ,
अंधेरा दूर करते हैं ...
जैसे जैसे पास जाओ तो एक अलग तरह कि उर्जा महसूस होती है !
आपको ईल्म होता है ...जौन कैसे जल रहे हैं !
कैसे आग निकल रही है ...
ख़ुद को तबाह करते हैं , बे-मलाल !
जौन माहताब (चाँद) हैं .....
इश्क़ ओ आशिक़ी का सुबूत...
फ़लक़ पर चमकता हुआ,
अँधेरे दिलों को सियाह रात में रौशन करता हुआ माहताब !
जौन की हर बात , उनका कहा हुआ
शायरी की दुनिया में सनद है !!
जौन बेबाक़ और साफ़ गो हैं !
जौन एक सूफ़ी है , जो रक़्स करता जाता है....
और अपने ही भीतर उतरता जाता है !!!
हम सब एक सवाल को खोज रहे हैं कि
आख़िर हम हैं कौन.... क्या हैं ...और क्यों हैं !!
इन सभी सवालों का जवाब ही हमारी ज़िंदगी का रद्दे अमल है ।
जौन उस दरवेश की तरह हैं जो ये जान गया हो कि हर शय का सच क्या है !!
जैसे मीरा ने जाना लिया था ,जैसे कबीर , जैसे तुलसी और
बाबा बुल्लेशाह ने जान लिया था !!!
मैं जौन को सारी उम्र यूँही लिखती रह सकती हूँ !!! ❤️
मेरी मुहब्बत ...मेरा वुजूद ....मेरा 'मैं ' जौन हैं !!!
1
हर हाल मे हंसने का हुनर पास था जिनके,
वह रोने लगें हैं तो कोई बात तो होगी ..
ये जौन साहब की कही बात है , कोई तो बात होगी ....
एक मुशायरे में कह रहे हैं ग़ज़ल पढ़ते पढ़ते !!
2.
जौन तुम्हें ये दौर मुबारक
दूर गम ओ आलाम से हो
एक लड़की के दिल को दुखा कर
अब तो बड़े आराम से हो
एक महकती अंगड़ाई के मुस्तकबिल का खून किया
तुमने उसका दिल रखा या उसके दिल का खून किया
खून-ए-जिगर का जो भी फ़न है सच जानो वो झूठा है
वो जो बहुत सच बोल रहा है सच जानो वो झूठा है
क़त्ल -ए -सीजर पर अंटोनी ने जो कुछ बोला झूठ था वो
यानी लबों ने जितना कुछ ज़ख्मों को तोला झूठ था वो
मय्यत पर 'सोहराब' की 'फिरदौसी' ने नाटक खेला था
उस के होठों पर थे नाले दिल में फ़न का मैला था
हुस्न बला का क़ातिल हो पर आखिर वो बेचारा है
इश्क़ तो वो क़ातिल है जिसने अपनों को भी मारा है
ये धोखे देता आया है दिल को भी दुनिया को भी
इसके झूठ ने ख्वार किया है सहरा में लैला को भी
दिल दुखता है कैसे कहूँ मैं छल से बे-छल होते हैं
जज़्बे में जो भी मरते हैं वो सब पागल होते हैं
थी जो इक सैयाद तुम्हारी ठहरी है इक सैद-ए-ज़बून
यानी अब होठों से मसीहा के रिसता है अक्सर खून
खून की थूकन है जो तुम्हारी क्या वो इक पेशा की नहीं
तुम हो मसीहाओं के हक़ में क़ातिल अंदेशा के नहीं
फ़न जो जुज़ फ़न कुछ भी न हो इक मुहलिक खुश-बाशी है
कार-ए-सुख़न
कार-ए-सुखन पेशा है तुम्हारा, जो खूनी अय्याशी है !
3.
मोहब्बत को जबरी शै तो है नहीं।
वो आई, मैंने देखा कि वो आई
खत तो पहले ही लिखती थी, फोन वगैरह भी
चूंकि वो मुझसे मुहब्बत करती थी, मैं नहीं तो मैंने अख़लाकी तौर पे मुहब्बत की अदाकारी की कि इसका दिल न
टूट जाए, ये ज़ाहिर न हो कि मैं मुहब्बत नहीं करता। गोया मैं एक्टिंग करता रहा !
उसे किसी तरह से इसका अंदाज़ा हो गया। मैंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी कि सच्चाई लगे। जो कुछ भी हो, ये मेरे
लिए इंसानी मामला था कि यार ये इतना चाहती है मुझे, कहीं इसे ये महसूस न हो कि इसे इसकी मुहब्बत का
जवाब नहीं मिला। मैंने मुहब्बत का जवाब मुहब्बत से ही दिया।
लेकिन बहरहाल असली मुहब्बत, ड्रामे की मुहब्बत में तो फर्क होता है। ज़हीन लड़की थी, समझ गई और बीमार
रहने लगी। टीबी हो गई। वो जो लिखा है खून थूकती है, मज़ाक थोड़े ही है। मुझे भी टीबी हुई थी। वो फिर ख़त्म हो
गई। अब किस किस तरह मैंने खून थूका उसके बाद।
जितना उसका असर अब तक मेरी रूह में है, उनका असर नहीं है जिनसे वाकई मैंने मुहब्बत की है। मुझे
अहसास ए ज़ुर्म है। अच्छा आप मुहब्बत ज़बरदस्ती तो कर नहीं सकते। मैं एक काम कर सकता था। मैं ये ज़ाहिर
कर सकता था मैं शदीद मुहब्बत करता हूं।
ये ज़ाहिर किया। आप कहते हैं मैंने गलती की। उसने नज़्म भी कही थी, पर मैंने महफूज़ नहीं रखी वो। कुछ यूं थी
जॉन तुम्हें ये दौर मुबारक दूर गम ओ आलाम से हो
एक लड़की के दिल को दुखा कर अब तो बड़े आराम से हो
एक महकती अंगड़ाई के मुस्तकबिल का खून किया
तुमने उसका दिल रखा या उसके दिल का खून किया.
#जौन
और लफ्ज़ों का सौदागर लफ्ज़ भूल गया ! जौन की एक रिकॉर्डिंग जिसको आप तक पहुंचाया !!
4.
जौन कहते हैं अगर हम अरब में हैं और ज़ाहिदा कराची में , और ऐसे में कोई हादिसा पेश आता है ईरान में , तो
जो मैं अरब में बैठा ख़्याल कर रहा हूंगा वही ज़ाहिदा कराची में बैठी सोच रही होगी ! इस कदर हमदिमाग़ ,
हमख़याल आशिक़ ओ माशूक़ का इश्क़ नाकाम हो सकता है तो दुनिया में किसी का भी इश्क़ नाकाम हो सकता
है!!! और ये उनकी कही बात है , जो किसी इंटरव्यू में जमाल अहसानी या क़ासिम साहब बता रहे थे !!
5.
आदमी आदमी को भूल गया !!!!! हद्द है! हमारे यहाँ बीसवीं सदी आई ही नहीं बल्कि वक़्त हमारे बाल खींच कर,
झिंझोड़ कर हमें बीसवीं सदी में ख़्वामख़्वाः ले जा रहा था वर्ना हम तो ग्यारहवीं-बारहवीं सदी ईसवी के लोग थे।
6.
जौन साहब के इंतकाल के कुछ महीने पहले उनके दोस्त अंजुम अयाज़ ने अपने घर अमरोहवी समोसों की दावत
दी. जौन साहब 40 समोसे खा गए. खाने के बाद बोले "आज ये बात तो गलत साबित हो गई कि मुझे भूख नहीं
लगती, भूख तो मुझे लगती है मगर शर्त ये है कि खाना मेरे मतलब का हो, जानी आज तू गवाह रहियो कि तेरे जौन
भाई ने 40 समोसे खाये हैं "
उसके बाद दो आदमियों ने जौन साहब को बड़ी मुश्किल से गाड़ी में डालकर घर पहुँचाया.
7.
भारत के बँटवारे से जौन साहब बहुत दुखी थे खासतौर पर धर्म को आधार बनाकर बँटवारा किया गया ये बात
उन्हें बहुत नागवार थी.. उनके परिवार के लोग पाकिस्तान चले गए लेकिन जौन साहब ने कभी नहीं चाहा कि वो
भारत छोड़ कर जाएं... बिमार भी हो गए फिर उनके परिवार वाले जबरन उन्हें 1956 में कराची ले कर चले गए..
पाकिस्तान का जिक्र करने पर जौन साहब हमेशा कहा करते थे
"पाकिस्तान, ये पाकिस्तान अलीगढ़ के लौंडों की शरारत थी" !
8.
एक बार जौन साहब की तबीयत कुछ नासाज थी डॉक्टर के पास गए..
जौन साहब डॉक्टर से मुआयना कराते हुए फरमाने लगे " डॉ. ऐसा महसूस होता है जैसे मेरे मेदे (पेट) की छत गिर
गई है और इसके मलबे में मेरी भूख दफ़न हो गई है"
डॉक्टर आँखें फैलाए उनकी बात सुन रहे थे.
एक रोज़ बोले " मेरी नींदों के परींदे मेरी आँखों के घोंसलों से उड़ गए हैं. दाना डालता हूँ मगर कमबख्त वापिस ही
नहीं आते "
एक और मौके पर डॉक्टर से कहने लगे " डॉ. साहेब मिरे ज़ेहन में आंधियाँ सी क्यूँ चलती हैं? ये तो आंधियों का
मौसम भी नहीं है? हमारे अमरोहे में तो जब आम का मौसम होता था तो आंधियाँ चलती थीं और टप-टप आम
गिरते थे, डॉक्टर साहेब कहीं मेरा दिमाग अरब का रेगिस्तान तो नहीं हो गया? क्योंकि पैगम्बर तो वहीं आते रहते
हैं'
ये जुमला डॉक्टर साहब के सर से गुजर गया और जौन साहब अपने मख्सूस अंदाज में मुस्कुरा दिये. !
9.
"मुझे 3 आदमियों ने सबसे जियादा मुतसि्र किया और वो हैं -- भगत सिंह, गामा पहलवान और सुल्ताना डाकू.
भगत सिंह साम्राजी दौर में हमारे ज़ज़्बा-ए-बग़ावत की यादग़ार-तरीन-अलामत थे.
गामा पहलवान को बड़े सग़ीर की शिकस्त-खूर्दगी के दौर में हमारी जिस्मानी कुव्वत के मज़हर की हैसियत हासिल
थी और सुल्ताना डाकू ने U.P के साम्राजी इंतज़ामिया को नाको चने चबवा दिए थे"
जौनएलिया
10.
जौन साहब अक्सर फरमाते " अमरोहा की तहज़ीब ने मुझे तबाह कर दिया.... अमरोहा तहज़ीब का मरकज़ था"
एक दिन किसी मिलने वाले ने उनसे कहा " एक साहेब गुजेश्ता साल अमरोहा गए थे वो कहते थे कि हमें तो वहां
मरकज़-वरकज़ के कोई आसार नज़र नहीं आए"
जौन साहब ने फरमाया " जानी ! मरकज़ तो हम खुद ही थे, सो हम कराची आ गए.."
उसने कहा " इसका मतलब ये हुआ कि अब अमरोहा तहज़ीब का मरकज़ नहीं रहा.."
जौन साहब ने फरमाया " गोया".
11.
मतला में शाह विलायत की दरगाह जो कि अमरोहा में है, की तरफ़ इशारा है l कहा जाता है कि बिच्छू दरगाह के
अंदर स्पर्श के बावजूद नहीं काटते l Jaun ने अपने बचपन के दिन यहीं गुज़ारे l
12.
तुम्हें तुम्हारे ख़ुदा रसूल मसीह भगवान और अवतारों की क़सम बताओ के तुम ज़िन्दगी भर सुनने की तरह सुनते
और समझने की तरह समझते हो? क्या तुम में से कोई ऐसा शख़्श है जो ये दावा कर सके के मैंने ज़िन्दगी भर
सुनने की तरह सुना और समझने की तरह समझा !
13.
ज़िन्दगी क्या है?
तख़्लीक़ी काम करने वालों के लिये यही सवाल बुनियादी हैसियत रखता है.
ज़िन्दगी उतनी ही "बेकराँ" है जितनी बेकराँ और लाहुदूद काएनात है. हम मजमूई शियारे (sputnick) के ज़रिये
अभी तक इस क़तरा-ए-अर्ज़ की हदूद से सिर्फ़ नौ सौ या एक हज़ार मील दूर पहुँचे हैं, लेकिन हमें काएनात का
सफ़र तय करना है.
बेहतर है कि सफ़र-ए-कायनात से पहले सफ़र-ए-हयात तय कर लें क्यों कि कायनात और हयात ये दोनों एक ही
तस्वीर के दो रुख़ और एक ही सिक्के के दो पहलू हैं..
काएनात का सफ़र कहा जाता है 'राकेट' के ज़रिये तय किया जाएगा लेकिन हयात की हदूद-ए-मालूमा और ग़ैर
मालूमा की पैमाइश के लिए ज़रूरी है कि हम अपनी 'फ़िक्र' और अपने 'समाजी' शउर और अपने तख़लीक़ी
मुताले के ज़रिये असरार-ए-ज़िन्दगी की उक़्दा कुशाईयाँ करें....
जौनएलिया
14
"कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बोलते हैं तो सिर्फ इसलिए कि सम्तों* में फ़साद फैलाएं, पर ये ना भूलो कि जो बोल कर
फ़साद फैलाते हैं अगर वो खामोश रहें तो दस गुना फ़साद फैलाएं..."
15.
ये सोचो की तुम्हारी सरनविश्त(destiny), में किसी नुक़्ते से ख़राबी पैदा हुई है और हलाकतों(casualties) का ये
सिलसिला कहाँ जा कर रुकता है ?
सोचो और समझो, तुम्हें अपनी ज़िंदगी के वार झेलने हैं, माज़ी की ज़र्बों(hits) का क़र्ज़ा नहीं चुकाना !
16.
माज़ी की वो कौन सी साज़िश है जो किसी तरह चैन से नहीं बैठने देती ?
तारीख़ का आख़िर वो कौन सा बाज़ार है जहाँ नफ़रतों का ज़हर फ़रोख़्त होता है ?
और ज़हर की वो कौन सी क़िस्म है, जिस की क़ीमत में ज़िंदगी तक पेश कर दी जाती है ?