शह्र ख़ामोश है शोरीदासरों3 के होते
क्यूँ शिकस्ता है तिरा रंग मता-ए-सदरंग4
और फिर अपने ही ख़ूनीं जिगरों के होते
कारे-फ़ारियादो-फ़ुग़ां5 किसलिये मौक़ूफ़6 हुआ
तेरे कुचे में तिरे बा-हुनरों के होते
क्या दिवानों ने तिरे कूच है बस्ती से किया
वरना सुनसान हों राहें निघरों के होते
जुज़ सज़ा7 और हो शायद कोई मक़्सूद8 उन का
जा के ज़िंदां9 में जो रहते हैं घरों के होते
शह्र का काम हुआ फ़र्ते-हिफ़ाज़त10 से तमाम
और छलनी हुए सीने सिपरों11 के होते
अपने सौदाज़दगां12 से ये कहा है उस ने
चल के अब आइयो पैरों पे सरों के होते
अब जो रिश्तों में बँधा हूँ तो खुला है मुझ पर
कब परिंद उड़ नहीं पाते हैं परों के होते
1. निर्जन स्थान जैसा सूनापन
2. आर्तनाद करने वालों
3. दीवाने
4. सैकड़ों रंगो की पूँजी वाला
5. आर्तनाद और दुहाई का कार्य
6. स्थगित
7. सज़ा के अतिरिक्त
8. आशय
9. कारागार
10. अत्यधिक सतर्कता
11. ढालों
12. प्रेम में पागल होने वालों।