नींद आने लगी है फ़ुर्क़त2 में
हैं दलीलें तिरे ख़िलाफ़ मगर
सोचता हूँ तिरी हिमायत3 में
रूह ने इश्क़ का फ़रेब4 दिया
जिस्म को जिस्म की अदावत5 में
अब फ़कत आदतों की वर्ज़िश6 है
रूह शामिल नहीं शिकायत में
इश्क़ को दर्मियाँ न लाओ कि मैं
चीख़ता हूँ बदन की उसरत7 में
ये कुछ आसान तो नहीं है कि हम
रूठते अब भी हैं मुरव्वत8 में
वो जो तामीर9 होने वाली थी
लग गयी आग उस इमारत में
अपने हुजरे10 का क्या बयां कि यहाँ
ख़ून थूका गया शरारत में
वो ख़ला11 है कि सोचता हूँ मैं
उस से क्या गुफ़्तगू12 हो ख़िल्वत13 में
ज़िन्दगी किस तरह बसर होगी
दिल नहीं लग रहा मुहब्बत में
हासिले-कुन14 है ये जहाने-ख़राब15
यही मुस्किन था इतनी उज्लत16 में
फिर बनाया ख़ुदा ने आदम को
अपनी सूरत पे ऐसी सूरत में
और फिर आदमी ने ग़ौर किया
छिपकली की लतीफ़ सनअत17 में
ऐ ख़ुदा (जो कहीं नहीं मौजूद)
क्या लिखा है हमारी क़िस्मत में
1. शर्मिन्दगी
2. विरह
3. तरफ़दारी
4. धोखा
5. शत्रुता
6. अभ्यास
7. कठिनता
8. शील संकोच
9. निर्माण
10. कोठरी
11. रिक्त होना, एकाकी होना
12. वार्तालाप
13. एकान्त
14. कुन=‘हो जा’, क़ुरआन के अनुसार ईश्वर ने यह शब्द कहा और सृष्टि उत्पन्न हो गयी
15. दुनिया
16. जल्दी
17. बारीक कला।