रहे आख़िर तिरी कमी कब तक
क्या मैं आँगन में छोड दूँ सोना
जी जलाएगी चाँदनी कब तक
अब फ़कत याद रह गयी है तिरी
अब फ़कत तेरी याद भी कब तक
मैं भला अपने होश में कब था
मुझ को दुनिया पुकारती कब तक
ख़ेमागाहे-शिमाल2 में आख़िर
उस की ख़ुशबू रची-बसी कब तक
अब तो बस आप से गिला है यही
याद आयेंगे आप ही कब तक
मरने वालो ज़रा बताओ तो
रहेगी ये चला-चली कब तक
जिस की टूटी थी साँस आख़िरे-शब
दफ़्न वो आरज़ू हुई कब तक
दोज़खे-ज़ात3 बावजूद तिरे
शबे-फुर्क़त4 नहीं जली कब तक
अपने छोड़े हुए मुहल्लों पर
रहा दौराने-जांकनी5 कब तक
नहीं मालूम मेरे आने पर
उस के कुचे में लू चली कब तक
1. जीवन का दुख
2. आदत के तम्बू
3. अस्तित्व का नरक
4. विरह रात्रि
5. मरणासन्न अवस्था का दौर।