शुक्रिया मश्वरत1 का, चलते हैं
हो रहा हूँ मैं किस तरह बर्बाद
देखने वाले हाथ मलते हैं
है वो ‘जान’ अब हर एक महफिल की
हम भी अब घर से कम निकलते हैं
क्या तकल्लुफ़2 करें ये कहने में
जो भी ख़ुश हैं हम उस से जलते हैं
है उसे दूर का सफ़र दरपेश3
हम सँभाले नहीं सँभलते हैं
तुम बनो रंग, तुम बनो ख़ुशबू
हम तो आपने सुख़न4 में ढलते हैं
मैं उसी तरह तो बहलता हूँ
और सब जिस तरह बहलते हैं
है अजब फ़ैसले का सह्रा भी
चल न पड़िये तो पांव जलते हैं
1. परामर्श
2. संकोच
3. सामने होना
4. काव्य।