अब कोई डर नहीं है बाहर से
सुब्ह दफ़्तर गया था क्यूँ इन्सान
अब ये क्यूँ आ रहा है दफ़्तर से
मेरे अन्दर कजी1 बला की है
क्या मुझे खींचता है मस्तर2 से
रन को जाता हूँ पर नहीं मालूम
आख़िरश हूँ मैं किस के लश्कर से
अहले-मजलिस3 तो सोएँगे ता देर
आप कब उतरियेगा मिंबर4 से
नहीं बदतर कि बदतरीन हूँ मैं
हूँ ख़जल5 अपने निस्फ़ बेहतर6 से
बोल कर दाद के फ़क़त दो बोल
ख़ून थुकवा लो शोबदागर7 से
अब जो डर है मुझे तो इस का है
अन्दर आ जाएँगे वो अन्दर से
1. टेढ़ापन
2. कागज़ पर मोड़ पर पंक्ति बनाने की दफ़ती
3. सभासद
4. सम्बोधन करने की चौकी
5. लज्जित
6. निस्फ़=आधा लाक्षणिक अर्थ पत्नी
7. जादूगर, यहाँ शाइर अभिप्राय।