और फिर ख़ुद ही हवा दूँ उस को
जो भी है उस को गँवा बैठा है
मैं भला कैसे गँवा दूँ उस को
तुझ गुमां पर जो इमारत की थी
सोचता हूँ कि मैं ढा दूँ इस को
जिस्म में आग लगा दूं उस के
और फिर ख़ुद ही बुझा दू उस को
हिज्र1 की नज़्र2 तो देनी है उसे
सोचता हूँ कि भुला दूँ उस को
जो नहीं है मिरे दिल की दुनिया
क्यूँ न मैं ‘जॉन’ मिटा दूँ उस को
1. जुदाई
2. भेट।