ख़्वाबों में ही सर्फ़1 हो चुका हूँ
सब मेरे बग़ैर मुत्मइन2 हैं
मैं सब के बग़ैर जी रहा हूँ
क्या है जो बदल गयी है दुनिया
मैं भी तो बहुत बदल गया हूँ
गो अपने हज़ार नाम रख लूँ
पर अपने सिवा मैं और क्या हूँ
मैं जुर्म का एतराफ़3 कर के
कुछ और है जो छुपा रहा हूँ
मैं और फ़क़त उसी की ख़्वाहिश
अख़्लाक़4 में झूठ बोलता हूँ
इक शख़्स जो मुझ से वक़्त ले कर
आज आ न सका तो ख़ुश हुआ हूँ
हर शख़्स से बेनियाज़5 हो जा
फिर सब से ये कह कि मैं ख़ुदा हूँ
चर्के6 तो तुझे दिये हैं मैंने
पर ख़ून भी मैं ही थूकता हूँ
रोया हूँ मैं अपने दोस्तों में
पर तुझ से तो हँस के ही मिला हूँ
ऐ शख़्स! मैं तेरी जूस्तजू7 से
बेज़ार8 नहीं हूँ, थक गया हूँ
मैं शामो-सह्र9 का नग़्मागर10 था
अब थक के कराहने लगा हूँ
कल पर ही रखो वफ़ा की बातें
मैं आज बहुत बुझा हुआ हूँ
1. ख़र्च
2. आनन्दपूर्वक
3. अंगीकार, स्वीकार
4. शिष्टाचारवश
5. नि:स्पृह
6. कष्ट देना
7. तलाश
8. ऊब जाना
9. सुब्ह और शाम
10. गायक।