किसी से कोई ख़फा भी नहीं रहा अब तो
गिला करो कि गिला भी नहीं रहा अब तो
वो काहिशें1 हैं कि ऐशे-जुनूं तो क्या यानी
ग़ुरूरे-ज़ह्ने-रसा2 भी नहीं रहा अब तो
शिकस्ते-ज़ात3 का इक़रार4 और क्या होगा
कि अददआ-ए-वफ़ा5 भी नहीं रहा अब तो
चुने हुए हैं लबों पर तिरे हज़ार जवाब
शिकायतों का मज़ा भी नहीं रहा अब तो
हूँ मुब्त्ला-ए-यक़ीं6, मेरी मुश्किलें मत पूछ
गुमान7 उक़्दाकुशा8 भी नहीं रहा अब तो
मिरे वजूद का अब क्या सवाल है यानी
मैं अपने हक़ में बुरा भी नहीं रहा अब तो
यही अतिया-ए-सुब्हे-शबे-विसाल9 है क्या
कि सह्रे-नाज़ो-अदा10 भी नहीं रहा अब तो
यक़ीन कर जो तिरी आरज़ू में था पहले
वो लुत्फ़ तिरे सिवा भी नहीं रहा अब तो
वो सुख वहाँ कि ख़ुदा की हैं बख़्शिशें क्या-क्या
यहाँ ये दुख कि ख़ुदा भी नहीं रहा अब तो
1. क्षीणता
2. किसी बात को तुरन्त समझ लेने की प्रतिभा का अभिमान
3. अन्दरुनी हार
4. स्वीकृति
5. वफ़ा का दावा
6. विश्वास ग्रसित
7. भ्रम
8. गाँठ खोलने वाला
9. मिलन-रात्रि की अगली सुबह की भेट
10. हाव-भाव का जादू।