यूँ ही बातें बनाते हैं हम जी
क्या भला आस्तीन और दामन
कब से पलकें भी अब नहीं नम जी
उस से अब कोई बात क्या करना
ख़ुद से भी बात कीजे कम-कम जी
दिल जो दिल क्या था एक महफ़िल था
अब है दरहम1 जी और बरहम2 जी
बात बेतौर हो गयी शायद
ज़ख़्म भी अब नहीं है महरम जी
हार दुनिया से मान लें शायद
दिल हमारे में अब नहीं दम जी
आप से दिल की बात कैसे कहूँ
आप ही तो हैं दिल के महरम3 जी
है ये हसरत कि ज़िब्ह4 हो जाऊँ
है शिकन उस शिकम की ज़ालम5 जी
कैसे आख़िर न रंग खेलें हम
दिल लहू हो रहा है जानम जी
है ख़राबा,6 हुसैनिया7 अपना
रोज़ मज्लिस8 है और मातम9 जी
वक़्त दम भर का खेल है इस में
बेश-अज़-बेश10 है कम-अज़-कम जी
है अज़ल11 से अबद12 तलक का हिसाब
और बस पल है पैहम13 जी
बेशिकन हो गयी हैं वो ज़ुल्फ़ें
उस गली में नहीं रहे ख़म14 जी
दश्ते-दिल15 का ग़ज़ाल ही न रहा
अब भला किस से कीजिए रम16 जी
1. बिखरा हुआ
2. नाराज़, क्रोधित
3. परिचित
4. वधित
5. सही शब्द ज़ालिम है लेकिन यहाँ भावातिरेक में भाषा के साथ खेलते हुए ‘ज़ालम’ लिखा है। एक अनौपचारिक अभिव्यक्ति है
6. शत्रु शासक देश
7. हज़रत हुसैन से सम्बन्धित
8. वह जलसा जिसमें कर्बला के शहीदों की चर्चा या शोक हो
9. शोक
10. अधिक से अधिक
11. आदिकाल
12. अन्तिम दिन
13. निरन्तर
14. पेज़
15. हिल रुपी जंगल
16. भागना।