शह्र में एक शोर है और कोई सदा1 नहीं
आज वो पढ़ लिया गया जिस को पढ़ा न जा सका
आज किसी किताब में, कुछ भी लिखा हुआ नहीं
अपने सभी गिले बजा, पर है यही कि दिलरुबा
मेरा तिरा मुआमला2 इश्क़ के बस का था नहीं
ख़र्च चलेगा अब मिरा किस के हिसाब में भला
सब के लिये बहुत हूँ मैं, अपने लिये ज़रा नहीं
जाइये ख़ुद में रायगां3 और वो यूँ कि दोस्तां
ज़ात का कोई माजरा, शह्र का माजरा नहीं
सीना-ब-सीना लब-ब-लब एक फ़िराक़ है कि है
फ़िराक़ है कि है, फ़िराक़ क्या नहीं
अपना शुमार कीजियो ऐ मिरी जान! तू कभी
मैंने भी अपने आप को आज तलक गिना नहीं
तू वो बदन है जिस में जान, आज लगा है जी मिरा
जी तो कहीं लगा तिरा, सुन, तिरा जी लगा नहीं
नाम ही नाम चारसू,4 एक हुजूम रू-ब-रू5
कोई तो हो मिरे सिवा, कोई मिरे सिवा नहीं
अपनी जबीं6 पे मैंने आज दीं कई बार दस्तकें
कोई पता भी है तिरा, मेरा कोई पता नहीं
1. आवाज़, ध्वनि
2. सम्बन्ध
3. व्यर्थ
4. चारों तरफ़
5. सन्मुख
6. ललाट।