है बिखरने को ये महफ़िले-रंगो-बू,1
तुम कहाँ जाओगे, हम कहाँ जाएँगे
हर तरफ़ हो रही है यही गुफ़्तगू,2
तुम कहाँ जाओगे, हम कहाँ जाएँगे
हर मता-ए-नफ़स3 नज़्रे-आहंग4 की,
हम को यारां हवस थी बहुत रंग की
गुलजमीं से उबलने को है अब लहू,
तुम कहाँ जाओगे, हम कहाँ जाएँगे
अव्वले-शब5 का महताब6 भी जा चुका
सह्ने-मैख़ाना7 से अब उफ़क़8 में कहीं
आख़िरे-शब9 है, ख़ाली है जामो-
सबू, तुम कहाँ जाओगे, हम कहाँ जाएँगे
कोई हासिल न था आरज़ू का मगर,
सानिहा10 ये है अब आरज़ू भी नहीं
वक़्त की इस मसाफ़त11 में बेआरज़ू,12
तुम कहाँ जाओगे, हम कहाँ जाएँगे
किस क़दर दूर से लौट कर आये
हैं, यूँ कहो उम्र बर्बाद कर आये हैं
था सराब13 अपना सरमाया-ए-जुस्तजू,14
तुम कहाँ जाओगे, हम कहाँ जाएँगे
इक जुनूं15 था कि आबाद हो शह्रे-
जां,16 और आबाद जब शह्रे-जां हो गया
हैं ये सरगोशियाँ दर-ब-दर17 कू-ब-
कू,18 तुम कहाँ जाओगे, हम कहाँ जाएँगे
दश्त19 में रक़्से-शौक़े-बहार20 अब कहाँ,
बाद पैमाई21 दीवानावार अब कहाँ
बस गुज़रने को है मौसमे-हा-ओ-हू,22
तुम कहाँ जाओगे, हम कहाँ जाएँगे
हम हैं रुस्वाकने-दिल्ली-ओ-लखनऊ,23
अपनी क्या ज़िन्दगी अपनी क्या आबरू
‘मीर’ दिल्ली से निकले, गये लखनऊ,
तुम कहाँ जाओगे, हम कहाँ जाएँगे
1. आनन्द की सभा
2. बात
3. साँसो की पूँजी
4. ध्वनि को भेंट
5. प्रथम प्रहर
6. – चाँद
7. मधुशाला का आँगन
8. क्षितिज
9. अन्तिम प्रहर
10. दुर्घटना
11. यात्रा
12. आकांक्षा रहित
13. मृगतृष्णा
14. तलाश की पूँजी
15. उन्माद
16. जान का नगर
17. द्वार-द्वार
18. गली-गली
19. जंगल