हैं कई हिज्र1 दर्मियां जानां
रायगां2 वस्ल3 में भी वक़्त हुआ
पर हुआ ख़ूब रायगां जानां
मेरे अन्दर ही तू कहीं गुम है
किस से पूछूँ तिरा निशां जानां
आलमे-बेकराने-रंग4 है तू
तुझ में ठैरूँ कहाँ-कहाँ जानां
मैं हवाओं से कैसे पेश आऊँ
यही मौसम है क्या वहाँ जानां?
रोशनी भर गयी निगाहों में
हो गये ख़्वाब बेअमां जानां
अब भी झीलों में अक्स पड़ते हैं
अब भी नीला है आस्मां जानां
है जो पुर ख़ूं5 तुम्हारा अक्से-ख़याल
ज़ख़्म आये कहाँ-कहाँ जानां
1. विरह
2. व्यर्थ
3. मिलन
4. रंगों का अद्भुत संसार
5. रक्तरंजित।