ख़ाक उड़ती रही मिरे घर में
न हुआ तू मुझे नसीब तो क्या
मैं ही अपने न था मुक़द्दर में
ले के सम्तों1 की एक बेसम्ती2
गुम हुआ हूँ मैं आपने पैकर3 में
डूबिये इस निगह के साथ कहाँ
धूल ही धूल है समन्दर में
चाहिए कुछ हुनर को उस का ख़याल
है जो बेमंज़री4-सी मंज़र में
माँग ले कोई याद पत्थर से
वक़्त पथरा गया है पत्थर में
कैसे पहुँचे ग़मीज5 तक ये ख़बर
घिर गया हूँ मैं अपने लश्कर में
एक दीवार गिर पड़ी दिल पर
एक दीवार ख़़िच गयी घर में
1. दिशाओं
2. दिशाहीन
3. अस्तित्व
4. दृश्यहीनता
5. लुटेरा, दुश्मन।