तेरे साथ तिरी याद आयी क्या तू सचमुच आयी है
शायद वो दिन पहला दिन था पलकें बोझल होने का
मुझ को देखते ही जब उस की अंगड़ाई शर्माई है
उस दिन पहली बार हुआ था मुझ को रफ़ाक़त1 का अहसास
जब उस के मल्बूस2 की ख़ुशबू घर पहुंचाने आयी है
हुस्न से अर्ज़े-शौक़3 न करना हुस्न को ज़क पहुँचाना4 है
हम ने अर्ज़े-शौक़ न कर के हुस्न को ज़क पहुँचाई है
हम को और तो कुछ नहीं सूझा अलबत्ता उस के दिल में
सोज़े-रक़ाबत पैदा5 कर के उस की नींद उड़ाई है
हम दोनों मिल कर भी दिलों की तन्हाई में भटकेंगे
पागल कुछ तो सोच ये तूने कैसी शक्ल बनाई है
इश्क़े-पेचां6 की संदल पर जाने किस दिन बेल चढ़े
क्यारी में पानी ठैरा है दीवारों पर काई है
हुस्न के जाने कितने चेह्रे हुस्न के जाने कितने नाम
इश्क़ का पेशा हुस्नपरस्ती7 इश्क़ बड़ा हरजाई है
आज बहुत दिन बाद मैं अपने कमरे तक आ निकला था
जूँ ही दरवाज़ा खोला है उस की ख़ुशबू आयी है
एक तो इतना हब्स8 है फिर मैं साँसें रोके बैठा हूँ
वीरानी ने झाड़ू दे के घर में धूल उड़ाई है
1. मैत्री
2. वस्त्र
3. अभिलाषा की प्रार्थना
4. लज्जित करना
5. प्रतिद्वन्द्वी के लिए जलन
6. लाल फूलों वाली एक बेल
7. सौन्दर्योपासना
8. उमस।