शाम का वक़्त है मियाँ, चुप रह
हो गया क़िस्सा-ए- वजूद3 तमाम4
है अब आग़ाज़े-दास्तां,5 चुप रह
मैं तो पहले ही जा चुका हूँ कहीं
तू भी जाना नहीं यहाँ, चुप रह
तू अब आया है हाल में अपने
जब ज़मीं है न आस्मां चुप रह
तू जहाँ था जहाँ जहाँ था कभी
तू भी अब तो नहीं वहाँ, चुप रह
ज़िक्र छेड़ा ख़ुदा का फिर तूने
यां है इन्सां भी रायगां,6 चुप रह
सारा सौदा7 निकाल दे सर से
अब नहीं कोई आस्तां,8 चुप रह
अहरमन9 हो, ख़ुदा हो, या आदम
हो चुका सब का इम्तिहां, चुप रह
दर्मियानी ही अब सभी कुछ है
तू नहीं अपने दर्मियां, चुप रह
अब कोई बात तेरी बात नहीं
नहीं तेरी, तिरी ज़ुबां, चुप रह
है यहाँ ज़िक्रे-हाले-मौजूदा10
तू है अब अज़गुज़िश्तगां,11 चुप रह
हिज्र12 की जांकनी13 तमाम हुई
दिल हुआ ‘जॉन’ बेअमां, चुप रह
1. विश्वास
2. भ्रम
3. अस्तित्व का वृतान्त
4. सम्पूर्ण
5. दास्तान का आरम्भ
6. व्यर्थ
7. उन्माद
8. चौखट
9. ईरानियों के मतानुसार ‘बदी’ का ईश्वर
10. वर्तमान की चर्चा
11. विस्मृतों मे से
12. विरह
13. मृत्यु सा कष्ट।