दाग़ ही देंगे मुझ को दान में क्या
मेरी हर बात बेअसर ही रही
नक़्स1 है कुछ मिरे बयान में क्या
मुझ को तो कोई टोकता भी नहीं
यही होता है ख़ानदान में क्या
अपनी महरूमियां2 छिपाते हैं
हम ग़रीबों की आन-बान में क्या
ख़ुद को जाना जुदा ज़माने से
आ गया था मिरे गुमान3 में क्या
शाम ही से दुकाने-दीद4 है बन्द
नहीं नुक़्सान तक दुकान में क्या
ऐ मिरे सुबहो-शामे-दिल की शफ़क़5
तू नहाती है अब भी बान6 में क्या
बोलते क्यूँ नहीं मिरे हक़ में
आबले पड़ गये ज़बान में क्या
1. त्रुटि
2. वंचनाएँ
3. भ्रम
4. दृश्य की दुकान
5. लालिमा
6. अमरोहा मे बहने वाली नदी।