तू इस बस्ती में रहियो पर न रहियो
सफ़र करना है आख़िर दो पलक बीच
सफ़र लम्बा है बे बिस्तर न रहियो
हरिक हालत के बैरी हैं ये लम्हे
किसी ग़म के भरोसे पर न रहियो
सहूलत से गुज़र जाओ मिरी जां
कहीं जीने की ख़ातिर मर न रहियो
हमारा उम्र भर का साथ ठैरा*
सो मेरे साथ तो दिन भर न रहियो
बहुत दुश्वार हो जाएगा जीना
यहाँ तू ज़ात के अन्दर न रहियो
सवेरे ही से घर आ जाइयो आज
है रोज़े-वाक़िआ2 बाहर न रहियो
कहीं छिप जाओ तहख़ानों में जा कर
शबे-फ़ित्ना3 है अपने घर न रहियो
नज़र पर बार4 हो जाते हैं मंज़र
जहाँ रहियो वहाँ अक्सर न रहियो
1. प्रेम प्रतिज्ञा
2. घटना का दिन
3. उपद्रव की रात
4. बोझ
* उर्दू कविता मे ठहरा के अर्थो मे ठैरा भी लिखा जाता है।