अब कोई शिकवा1 हम नहीं करते
जाने- जां तुझ को अब तिरी ख़ातिर
याद हम कोई दम नहीं करते
दूसरी हार की हवस2 है सो हम
सरे-तस्लीम3 ख़म नहीं करते
वो भी पढता नहीं है अब दिल से
हम भी नाले4 को नम नहीं करते
जुर्म में हम कमी करें भी तो क्यूँ
तुम सज़ा भी तो कम नहीं करते
1. उलाहना
2. लालसा
3. सम्मान/स्वीकारोक्ति में सर झुकाना
4. आर्तनाद।