ईज़ादेही1 की दाद2 जो पाता रहा हूँ मैं
हर नाज़ आफ़रीं को सताता रहा हूँ मैं
ऐ ख़ुशख़िराम!3 पाँव के छाले तो गिन ज़रा
तुझ को कहाँ-कहाँ न फिराता रहा हूँ मैं
तुझ को ख़बर नहीं कि तिरा हाल देख कर
अक्सर तिरा मज़ाक़ उड़ाता रहा हूँ मैं
जिस दिन से एतमाद4 में आया तिरा शबाब5
उस दिन से तुझ पे ज़ुल्म ही ढाता रहा हूँ मैं
बेदार कर के तेरे बदन की ख़ुद आगही6
तेरे बदन की उम्र घटाता रहा हूँ मैं
इक सत्र7 भी कभी न लिखी मैंने तेरे नाम
पागल तुझी को याद भी आता रहा हूँ मैं
शायद मुझे किसी से मुहब्बत नहीं हुई
लेकिन यक़ीन सब को दिलाता रहा हूँ मैं
इक हुस्ने-बेमिसाल8 की तम्सील9 के लिये
परछाइयों पे रंग गिराता रहा हूँ मैं
अपना मिसालिया10 मुझे अब तक न मिल सका
ज़र्रों को आफ़्ताब11 बनाता रहा हूँ मैं
क्या मिल गया ज़मीरे-हुनर12 बेच कर मुझे
इतना कि सिर्फ़ काम चलाता रहा हूँ मैं
कल दोपहर अजीब-सी इक बेदिली रही
बस तीलियाँ जला के बुझाता रहा हूँ मैं
1. दुःख पहुँचाना
2. प्रशंसा
3. सुगामिनी
4. विश्वास
5. तारुण्य
6. स्वविवेक
7. पंक्ति
8. अनुपम सौन्दर्य
9. उपमा
10. उदाहरण स्वरुप
11. सूर्य
12. कला की आत्मा।