वो कौन है जिसे देखा नहीं कभी मैंने
तिरा ख़याल तो है पर तिरा वजूद1 नहीं
तिरे लिये तो ये महफ़िल सजाई थी मैंने
तिरे अदम2 को गवारा न था वजूद मिरा
सो आपनी बेख़कनी3 में कमी न की मैंने
हैं तेरी ज़ात से मंसूब4 सद फ़साना-ए-इश्क़5
और एक सत् र6 भी अब तक नहीं लिखी मैंने
ख़ुद आपने इश्वा-ओ-अंदाज़7 का शहीद हूँ मैं
ख़ुद अपनी ज़ात से बरती है बेरुख़ी मैंने
ख़राशे-नग़्मा8 से सीना छिला हुआ है मिरा
फुग़ा9 कि तर्क10 न की नग़्मापरवरी11 मैंने
दवा से फ़ायदा मक़्सूद12 था ही कब कि फ़क़त
दवा के शौक़ में सेहत तबाह की मैंने
सरूरे-मै13 पे भी ग़ालिब रहा शऊर मिरा
कि हर रिआयते-ग़म14 ज़हन में रखी मैंने
ग़मे-शऊर15 कोई दम तो मुझ को मुहलत दे
तमाम उम्र जलाया है अपना जी मैंने
इलाज ये है कि मजबूर कर दिया जाऊँ
वगना यूँ तो किसी की नहीं सुनी मैंने
1. अस्तित्व
2. परलोक
3. उन्मूलन
4. सम्बन्धित
5. प्रेम की सौ कहानियाँ
6. पंक्ति
7. हाव-भाव और ढंग
8. नग्म़े की ख़राश
9. अर्त्तनाद
10. छोड़ना
11. नग़्मे का पोषण
12. अभीष्ट
13. शराब का हल्का नशा
14. चेतना
15. चेतना का दुख।