उस से रिश्ता ही क्या रहा मेरा
आज मुझ को बहुत बुरा कह कर
आप ने नाम तो लिया मेरा
आख़िरी बात तुम से कहना है
याद रखना न तुम कहा मेरा
अब तो कुछ भी नहीं हूँ मैं वैसे
कभी वो भी था मुब्तला1 मेरा
वो भी मंज़िल तलक पहुँच जाता
उस ने ढूँढ़ा नहीं पता मेरा
तुझ से मुझ को निजात मिल जाये
तू दुआ कर कि हो भला मेरा
क्या बताऊँ बिछड़ गया यारां
एक बिलक़ीस2 से सबा3 मेरा
1. आसक्त
2. सुलेमान की पत्नी
3. यमन का एक नगर, जो सुलेमान को दहेज़ में मिला था।