इक बला तो टली मिरे सर से
मुस्तक़िल1 बोलता ही रहता हूँ
कितना ख़ामोश हूँ मैं अन्दर से
मुझ से अब लोग कम ही मिलते हैं
यूँ भी मैं हट गया हूँ मंज़र से
मैं ख़मे-कूचा-ए-जुदाई2 था
सब गुज़रते गये बराबर से
हुजरा-ए-सद बला3 है बातिने-ज़ात4
ख़ुद को तो खींचियो न बाहर से
क्या सह्र हो गयी दिले-बेख़्वाब5?
इक धुआँ उठ रहा है बिस्तर से
1. निरन्तर
2. वियोग की गली मे झुकाव
3. अनगिनत आपत्तियों की कोठरी
4. अस्तित्व के अन्दर
5. अनिद्रा ग्रसित दिल।