सब घरोंदे बिखरते जाते हैं
महमिले-सुब्हे-नौ1 कब आयेगी
कितने ही दिन गुज़रते जाते हैं
मुस्कुराते ज़रूर हैं लेकिन
ज़ेरे-लब2 आह भरते जाते हैं
थी कभी कोहकन3 मिरी शीरीं
अब तो आदाब बरते जाते हैं
बढ़ता जाता है कारवाने-हयात4
हम उसे याद करते जाते हैं
शह्र आबाद कर शह्र के लोग
अपने अन्दर बिखरते जाते हैं
रोज़ अफ़्ज़ूं5 है ज़िन्दगी का जमाल
आदमी हैं कि मरते जाते हैं
‘जॉन’ ये ज़ख़्म कितना कारी6 है
यानी कुछ ज़ख़्म भरते जाते हैं
1. नयी सुब्ह का कजावा
2. होठों में
3. पहाड़ काटने वाला, फ़रहाद की उपाधि
4. जीवन का कारवाँ
5. जो प्रतिदिन बढ़ता रहे
6. भरपूर।