जॉन हम को वहाँ बुला भेजो
क्या हमारा नहीं रहा सावन
ज़ुल्फ़ यां भी कोई घटा भेजो
नयी कलियाँ जो अब खिली हैं वहाँ
उन की ख़ुशबू को इक ज़रा भेजो
हम न जीते हैं और न मरते हैं
दर्द भेजो न तुम दवा भेजो
धूल उड़ती है जो उस आँगन में
उस को भेजो सबा-सबा भेजो
ऐ फ़कीरो! गली के उस गली की
तुम हमें अपनी ख़ाके-पा1 भेजो
शफ़क़े-शामे-हिज्र2 के हाथों
अपनी उतरी हुई क़बा3 भेजो
कुछ तो रिश्ता है तुम से कमबख़्तो
कुछ नहीं, कोई बद्दुआ भेजो
1. चरणधूलि
2. वियोग की शाम की लालिमा
3. परिधान।