मगर न यूँ हो कि हम अपने काम के न रहें
ज़बां है उस की रफ़ाक़त3 कि उस के दोश-ब-दोश4
चलें तो मंज़रे-हुस्ने-ख़िराम5 के न रहें
कहाँ है वस्ल6 से बढ़ कर कोई अता7 लेकिन
ये ख़ूब है कि पयामो-सलाम8 के न रहें
नसीब हो कोई दम9 वो मुआशे-हाल कि हम
हिसाबे-सिल्सिला-ए-सुब्हो-शाम10 के न रहें
ये बात भी है कि लम्हों के लोग जाए कहाँ
अगर फ़रेबे-बक़ा-ए-दवाम11 के न रहें
ख़ुदा नहीं है तो क्या हक़ को छोड़ दें ऐ शेख़!
ग़ज़ब ख़ुदा का हम अपने इमाम के न रहें
1. उन्माद
2. मर्यादा की लालसा
3. मित्रता
4. कन्धे से कन्धा मिलाकर
5. मृदुल चाल के सौन्दर्य का दृश्य
6. मिलन
7. प्रदान
8. दूसरे के द्वारा दो व्यक्तियों की बातचीत
9. पल
10. रात-दिन की श्रृंखला का हिसाब
11. अनश्र्वरता का धोखा।