बाक़ी को क्या करना है
शह्र है चेह्रों की तम्सील1
सब का रंग उतरना है
वक्त़1 है वो नाटक जिस में
सब को डरा कर डरना है
मेरे नक़्शे-सानी2 को
मुझ में ही से उतरना है
कैसी तलाफ़ी3 क्या तदबीर4
करना है और भरना है
जो नहीं गुज़रा है अब तक
वो लम्हा तो गुज़रना है
अपने गुमां का रंग था मैं
अब ये रंग बिखरना है
हम दोपाये हैं सो हमें
मेज़ पे जा कर चरना है
चाहे हम कुछ भी कर लें
हम ऐसों को सुधरना है
हम तुम हैं इक लम्हे के
फिर भी वादा करना है
1. समानता
2. दूसरे चित्र को
3. क्षतिपूर्ति
4. उपाय।