Jaun Eliya
Book Yaani
ज़मीं तो कुछ भी नहीं
आसमां तो कुछ भी नहीं
अगर गुमान न हो,
दरमियां तो कुछ भी नहीं
हरीम जां में इक दास्तां कुछ भी पुरहाल
खुश उसका हाल
मगर दास्तां तो कुछ भी नहीं
दुर व नयाने तसल्ली से तू मिला है कभी?
अज़ाबे हसरते बैरूनियां तो कुछ भी नहीं
सहे हैं मैंने अजब कर्ब सूदमन्दी के
गिला है तुझको ज़ियां का,
ज़ियां तो कुछ भी नहीं
किसे ख़बर सरे मंज़िल
जो दिल ने हाल सहे'
अज़िय्यत सफ़र रायगां तो कुछ भी नहीं
नहीं है मुझ सा ज़बांदां कोई ज़माने में
जो मेरा गम है, वह यह है ज़बां तो कुछ भी नहीं
है जॉन काफला व राहिला में शोर बपा
यहां तो कुछ भी नहीं है,
वहां तो कुछ भी नहीं
हिसाबे पेश व पशे ज़ात कर रहा था मैं
न जाने किस ने कहा दरमियां तो कुछ भी नहीं !
JAUN ELIYA