हाय जाना की मेहमादारियाँ
और मुझ दिल की बदन आज़ारियाँ
ढा गयीं दिल को तेरी देहलीज़ पर
तेरी क़त्ताला सरीनीं भारियाँ
उफ़ शिकन, हाय शिकम, जानम मेरी
क्या कट्टारी कट्टारी हैं कारियाँ
वो तेरे छातियों का तन-तनाव,
फिर तेरी मज़बूरिया नाचारियाँ
दुःख गुरूर-ए-हुस्न के जाना है कौन
किस ने समझी हुस्न की दुश्वारियाँ
अपने दरबान को संभाले रखिये
हैं हवस की अपनी इज़्ज़तदारियाँ
हैं सिधारी कौन से शहरों तरफ
लड़कियाँ वो दिल गली की सारियाँ
झूठ सच के खेल में हलकान हैं
ख़ूब है ये लड़कियां बेचारियाँ
ख्वाब जो ताबीर के बस के न थे
दोस्तों ने उनपे जाने वारियाँ
लफ्ज़-ओ-मानी का बहम क्यों है सुखन?
किस ज़माने में थी इनमें यारियाँ
शौक़ का एक दाव बेशौक़ी भी है
हम हैं उसके हुस्न की इन्कारियाँ
मुझसे बदतौरी न कर ओ शहरयार
मेरे जूतों के हैं तलवे ख्वारियाँ वो जो जीते हैं, उन्होंने बेतरह
जीतने पे हिम्मतें हैं हारियाँ तुमसे जो कुछ भी न कह पाये मियाँ
आख़िरश करते वो क्या बेचारियाँ खा गयी उस ज़ालिम-ए-मज़लूम को
मेरी मज़्लूमी-नुमा अय्यारियाँ ये हरामी
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